ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है|
जांचा है – परखा है,
माँ को मिट्टी - गोबर से घर लीपते देखा है,
कुआँ से पानी लाने में, उसे हांफते हुए देखा है|
ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है|
ज़िन्दगी को कभी सिसकते तो कभी संवरते देखा है,
कभी अपनों को, मुकरते हुए देखा है|
ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है|
उम्मीदों से सींचे हुए, पले – पुसे घर को,
तिनका सा – बिखरते हुए देखा है|
ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है|
अल्हड़ बचपन को, सोंधेपन के मन को, यौवन को,
ज़िम्मेदारी की चाशनी में, घुलते हुए देखा है|
ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है|
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