हे भारत माता! मैं तुझको शीश नवाता, तेरे चरणों मैं बालक बार-बार झुक जाता। उत्तर में खड़ा हिमालय, दक्षिण में सागर लहराता, छह ऋतुओं से शोभित, तेरा अंग -अंग मुस्काता।
तेरा मेरा जन्मों का गहरा नाता, तेरी आन के खातिर मैं, मर-मर जाता। यहाँ जन्म लेकर अशोक, महान कहलाता, चंद अपनी शीतलता से नहलाता।
सूरज तुझको हर पल रोशन करता, पवन शीतल मंद सुगन्धित बहता। किसान पल-पल मेहनत करता, जवान सीमा पर देश हेतु लड़ता।
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