जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना।। मैंने इसका प्रयोग अपने ढंग से किया है।
गाल पर थाप लगाकर, पत्नी ने जगाया। सारे दिन बहुत मज़ा आया। पत्नी को प्रेमिका बना के तो देखो, दिल में विठा कर, मुस्कुरा के तो देखो। कभी श्रृंगार को, सजा के तो देखो। कभी उसके प्यार को, बसा के तो देखो। दुनिया ज़माने के, सुख मिल जायेंगे। मन में डले बीज, अंकुरित होकर पौध के पत्ते की तरह, खुलते चले जायेंगे। धर्म पलेगा, संस्कार सजेंगे। मंदिर से घर में गृह मैत्री होगी। हास्य से हारेंगे, व्यंग के तेबर। करुण राश आया तो, धैर्य से पियोगे। धन के साथ में संतोष धन आएगा। प्रेम पिघल कर, जल सा मिल जायेगा। संगम का जल, पवित्र कहलायेगा। मंगल सूत्र गले से, मंगल गीत जाएंगे। मानस की चोपाई, मानस सुनाएगा। जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना।। पवित्र तन मन, मर्यादा के आँचल में कल युग के नरक को, हर पल जी जायेगा। मरने के बाद भी, नाम और कर्म को समाज के इतिहास में, सम्मान मिल जाएगा।
Lokesh Rusia is simple man who lives life each day, loves his simple life, admires it and still mixing vibrant colors of love, joy, liberty, nature and even reality, bravery, standing for cause etc, through his poems.
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