"तुम कहते कागज की लेखी, मैं कहता आँखों की देखी”
-संत कबीर
बात 1980 की है मैं परिवार सहित बड़े भाई साहब से मिलने भोपाल गया था रेल्वे स्टेशन से भाई साहब के घर के लिये ऑटो रिक्सा किया। ऑटो में आराम से बैठ संकें, इसलिए सूटकेस ऑटो.के पीछे के हिस्से में रख दिया। घर पहुंचकर बच्चे उतर कर अन्दर चले गये और पत्नी ने अपना बैग उठाया, वह घर में चली गई और मैंने ऑटो का किराया चुकाया और अन्दर चला गया!
कुछ देर बाद जब कपड़े बदलना चाहे तब याद आया कि सूटकेस टैक्सी से उतारने का ख्याल नहीं रहा और सूटकेस ऑटो में रखा रह गया और हमारे होश उड़ गये। उसमें 15-16 तोला सोने के जेवर तथा 1/2 किलो चांदी का सामान था और अठ हजार रूपये कैश था। मैं पागलों की तरह ऑटो ढूंड़ने भागा, ऑटो स्टैण्ड भी गया, लेकिन वह ऑटो कहीं नहीं मिला। हार कर भाई साहब के ऑफिस गया और भाई साहब को सारी घटना बतलाई उन्होंने धैर्य रखने को कहा साथ में एक बाबू को भेजकर थाने में रिपोर्ट लिखवाने भेज दिया।
थानेदार ने रिपोर्ट लिखने के बाद कहा कि यहां एसी घटनायें रोज होती रहती हैं। यदि ऑटो का नम्बर हमारे पास होता तो बात बन सकती थी ! वरना कठिन कार्य है तथा ऑटो वाले कपड़े तथा अन्य सामान एक पहाड़ी के पीछे फेंक जाते हैं वह दिखवा लूंगा, वह ले जाना।
निराश होकर घर लौट आया पूरे दिन मैं तथा पूरा परिवार बहुत दुःखी रहा, बच्चों तक ने खाना नहीं खाया, तभी शाम 6 बजे दरवाजे पर एक ऑटो के रूकने की आवाज आई, हम लोग देखने दरवाजे पर आये देखा वही ऑटो वाला था, जिसने हमें घर छोड़ा था। वह सूटकेस लिए हमसे पूंछ रहा था कि साहब यह सूटकेस आपका ही है क्या? सूटकेस देखकर हम लोगों के चेहरे खिल उठे और हमने स्वीकृति दी कि सूटकेस हमारा ही है। तब वह बोला कि चाबी से ताला खोलकर सामान चैक कर लें। हम लोग ऑटो वाले का चेहरा देखते रह गये।
उसने बताया कि साहब आजकल हमारे रोजे चल रहे हैं। इसलिये शाम 6 बजे के पहले घर पहुंच जाता हूं। ऑटो खड़ाकर मैं हाथ मुंह धोने चला गया और रोज की तरह हमारी बेगम ने ऑटो की सफाई की तो उन्हें सूटकेस रखा मिला तब उन्होंने पूछा कि यह किसका है? तब मुझे आपकी याद आई और मैंने उन्हें समझाया कि नवाज अदा करने के बाद दे आऊंगा। बेगम बोलीं नहीं पहले देकर आओ सूटकेस के मालिक परेशान हो रहे होंगे। इस हालात में तो अल्लाह तुम्हारी नवाज कुबूल नहीं करेंगे। इसलिये मैं देने चला आया। कृपया आप सामान चैक कर लीजिए तो मैं वापिस जाऊँ! मैंने उसके दोनों हाथ पकड़कर चूम लिये तथा रु. 500/- देने लगा तो उसने मना कर दिया और यहां तक कि सूटकेस घर छोड़ने आने के लिए पेटोल के पैसे भी नहीं लिए। मैं आज तक उस वाकये को तथा उस इंसान को और उसकी इंसानियत को भूल नहीं पाया हूँ।
मैं एक घटना का और उल्लेख करना चाहूंगा। जब मैं इन्दौर की कृषि कॉलेज कॉलोनी के एक क्वार्टर में रहता था। हमारे क्वार्टर के बगल में ही अंसारी जी का क्वार्टर था। उनकी एक मात्र संतान 7-8 वर्ष की 'बसरा' नाम की लड़की थी। 'बसरा’ हमारी छोटी लड़की की घनिष्ठ सहेली थी। दोंनो लड़कियां साथ-साथ स्कूल जातीं तथा साथ-साथ खेलतीं थीं। इस कारण हमारे परिवारों के बीच भी घनिष्ठता थी।
एक दिन अंसारी जी अपने घर के बाहर बैठे थे और चिन्तित नजर आये, मैं भी उनके पास जाकर बैठ गया और पूंछा कि सब खैरियत तो है? जवाव में वह तपाक से बोले कि सरकार को किसी भी धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये और कहा कि हमारे धर्म में रिवाज है कि शादी के वखत पंचों के सामने मैहर बाँध दिया जाता है कि अगर शौहर तलाक दे दे तो पत्नी को मैहर की रकम दे दी जाती है और उसे कबूल करके अलग हो जाना होता है।
बाकया यह था कि इन्दौर की ही शायरा बानो वेगम को 50 साल की उम्र में उनके शौहर ने तलाक दे दिया था और मेहर की 50000/- रु. की रकम दे दी थी। उनकी चार सन्तानों में दो की शादी भी होना थी। इतने में गुजारा होना कठिन था। जबकि उनके शौहर करोड़पति थे। इसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट चली गई कि उनका आधा हक बनता है और सुप्रीम र्कोर्ट ने शारावानो के हक में फैसला दिया था। इस मुद्दे पर पूरे देश में बहुत हल्ला मचा था। मुसलमान धर्मालम्बी हल्ला मचा रहे थे कि यह उनके धर्म में दखलनदाजी है। बाद में केन्द्रीय सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कानून बनाना पड़ा था।
हम अंसारी जी के बगल में बैठे थे और अंसारी जी का भी यही गम था कि कोर्ट ने उनके धर्म में दखलनदाजी की है। इस बीच अंसारी जी की वेगम दो कप चाय हम दोंनो के लिये मेज पर रख गई थी। चाय पीते हमने अंसारी जी से कहा कि क्षमा करें और बुरा न माने तो एक बात कहूं कि खुदा न करे एसी ही घटना आपकी लड़की के साथ घट जाये और पचास हजार की जगह 5 लाख मेहर की रकम हो तो क्या उस हालात में आपकी लड़की की कीमत 5 लाख कहलाई? यह सुनकरेउनका चेहरा उतर गया और कहा कि मैं उसके शौहर को गोली मार दूंगा। इसके बाद कुछ बड़बड़ाये जिसका आशय यही था कि उन्होंने महसूस किया कि वह धर्माल्ध हो गये थे।
- इस्लाम और मेरे खट्टे मीठे अनुभव… - May 1, 2019
Facebook Comments