३५ वर्षों के बंधन में, सुख ज्यादा – दुःख भूले हैं,
अपनों के संग मन भरके, मन से झुला झूले हैं|
मात-पिता से मिला जो चिंतन, मन के धन को छूते हैं,
उनसे जो आशीष मिला है, उसमें सब कुछ भूले हैं|
अपना एक परिवार बना है, अपनों के संग जीते हैं,
अपनों की सीमा में रहकर, कुल ड्योढ़ी को छूते हैं|
बच्चों के बचपन से अब तक, सच बोया सच पाया है,
दोनों के सपनों में हर दम, सच का बादल छाया है|
ईश्वर रहा दयालु हर पल, कर्म-धर्म निभ पाया है,
शेष रहा जो निभ जाने को, उजियारा मन में छाया है||
Facebook Comments