उन पलो, उन लम्हों को याद करके कभी तो मन बहुत खुश हो जाता है, और दूसरे ही पल उदास। वे लम्हे जब मैं छोटी थी , मैंने तो उस उम्र में अपने नाना जी में अपनी सारी खुशियां ही पाली थीं। मन खुश तब हो जाता है जब ये सोचता है और गर्व महसूस करता है कि वो दिमाग के बदले दिल से फैसले करने वाले इंसान, मेरे नाना जी थे। क्योंकि जो इंसान दिल से फैसले करता है उनके मन में न तो कही खोट होती है और न ही स्वार्थ। और शायद इसलिए वह भला इंसान दुनिया से चला जाता है। मेरा मन दुखी उन बातों पर हो जाता है जब ये सोचता है कि क्यों इतना भोला बनाया उन्हें। मन रो पड़ता है जब ये सोचता है कि वो मेरे पास नहीं हैं। कोई नहीं समझ पाया आज तक कि कितने दुखों, कितने ग़मों, कितने कष्टों से जूझे थे वो। वो मुझे इतना प्यार करते थे जिसको मैं शब्दों में वयां नहीं कर सकती। मेरे जन्म के कुछ सालों बाद ही पता नहीं उनके साथ कुछ एसा हुआ कि उनकी याद्दाश्त चली गयी और हालत एसी हो गयी, जैसे वे क्या कर रहे हैं उन्हें सुधबुध ही नहीं है। उन्हें होश ही नहीं था कि उन्हें क्या करना है, और क्या नहीं करना है। पर इतनी ख़राब हालत में भी मेरे प्रति उनका प्यार देख कर कोई भी चौंक जाता था, क्योंकि मेरे नाम के अलावा ना तो उन्हें कुछ याद था और न ही पूरे दिन मेरे नाम को रटने के अलावा कोई काम था उनके पास। किसी बच्चे के रोने पर वे यही कहते थे कि रिम्मी (याने मैं) रो रही हूँ। तब तक मैं बहुत बड़ी हो चुकी थी, पर उनके लिए वही छोटी बच्ची थी। इतना भी क्या कम था जो भगवान ने उनके साथ इससे भी भयानक हादसा होने दिया। उनके दिमाग ने तो पहले ही सोचना बंद कर दिया था, शरीर थोड़ा बहुत साथ दे रहा था, उस वक्त तो उसने भी उनका साथ देना छोड़ दिया। वैसे तो पहले से ही नाना जी के सारे कामों की जिम्मेदारी नानी पर थी, पर इस वक्त तो वो भी बेचारी टूट गयीं थीं। मुझे बताने में ही डर लग रहा है कि कितनी मशीनों के सहारे, कितने लोगों के सहारे लगभग १ महीने तक वो हॉस्पिटल में रहे। तब कही जाकर मशीनों ने साथ छोड़ा, तो लगभग १ साल तक जीवित रहने के बाद अचानक भगवान ने हमेशा - हमेशा के लिया उन्हें अपने पास बुला लिया। वो १ फरवरी २००४ का दिन था जब वे तो हमे छोड़ कर चले गए, पर छोड़ गए एक ऐसी विरासत, जिसे न तो में भूलना चाहती हूँ और न ही भुला पाऊँगी । वो उनकी पुराणी डायरी जिसमे वे अपने दुख को प्रकट करने का तरीका ढूंढ रहे थे, अपनी कविताओं में। मेरे नानाजी में जितना प्यार मुझे दिया था उसका कर्ज तो मैं कभी नहीं चुका सकती, पर उनकी डायरी में लिखी उन कविताओं को हमेशा सहेज कर रखने के लिए कोशिश तो कर सकती हूँ। और जिन्हे पढ़ने से तो पत्थर भी मोम बन जाये। यही मेरी तरफ से मेरे पूज्य नानाजी को मेरी श्रद्धांजली होगी।
Sneha Singh is from Indore, Madhya Pradesh who did not have large collection of poems and articles in her diary but small collection have real feelings.
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