कल तक ये दिन भी आम दिन सा लग रहा था | होली त्यौहार की कुछ उत्सुकता भी नहीं थी | सोचा भी नहीं था एसा क्यूँ?
सुबह उठ के रोज़ की तरह ऑफिस आ गया| ऑफिस में सबने बधाई थी तो मैंने भी happy holi बोल दिया| अभी भी नहीं लग रहा था की कोई त्यौहार है|
समस्या तो तब हुई जब एक बचपन के दोस्त का फ़ोन आया और बचपन की कुछ बातें हुईं|
पुरानी यादें ताजा सी हो गयीं|
आँखें मेरी नम सी हो गई||
चेहरे पर रंग वाले पानी की जगह,
बेरंग पानी की बूंदें आ गयीं||
अब घर वाली होली की याद आने लगी थी,
गुजिया खाने को जीव ललचाने लगी थी|
बचपन में भले ही घर में छुप जाते थे,
लेकिन हम पुरे जोश से होली मानते थे||
भले ही कभी होली पर भांग न पी हो,
लेकिन होली का नशा पांच दिन तक चलता था|
भले ही हम दूर से पिचकारी चलते थे,
लेकिन हम पुरे जोश से होली मानते थे||
मोहोल्ले की रंगी हुई सड़कें, रंगे हुए चेहरे,
मन को बहुत भा जाते थे और,
पक्का हरा रंग देख, हम भले ही डर जाते थे,
लेकिन हम पुरे जोश से होली मानते थे||
दोस्तों के साथ रंग उड़ाते हुए,
दूर दूर तक घुमने निकल निकल जाते थे|
घर गन्दा करने पर, पापा की थोड़ी डांट खा जाते थे,
लेकिन हम पुरे जोश से होली मानते थे||
भाई दूज पर पूजा ख़त्म होने का इंतज़ार,
सभी बहनों से टीका करवाते थे|
भले ही शगुन पे थोडा बहुत झगड़ जाते थे,
लेकिन हम पुरे जोश से होली मानते थे||
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